युक्तियुक्तकरण का दर्द: सुनीता ना तो चल सकती है…ना गुरुचरण ठीक से खड़े हो सकते है…फिर भी हो गया 100 किलोमीटर दूर ट्रांसफर,
रायपुर :- शिक्षा विभाग के युक्तियुक्तकरण से जहां कई स्कूलों की तस्वीर बदली है, वहीं कुछ शिक्षकों की ज़िंदगी मुश्किलों में घिर गई है। जशपुर जिले के दो दिव्यांग शिक्षक — सुनीता पैकरा और गुरुचरण बड़ा — आज शासन प्रशासन की बेरुखी और प्रक्रिया की संवेदनहीनता के कारण रोज़ाना मानसिक और शारीरिक पीड़ा झेल रहे हैं।जशपुर की सुनीता पैकरा व गुरुचरण बड़ा से ज्यादा युक्तियुक्तकरण का दर्द शायद ही कोई और महसूस कर पायेगा। जो ना तो ठीक से खड़े हो पाते हैं और ना ही पैरों के बल चल पाते हैं। कोई 100 प्रतिशत विकलांग है, तो कोई 80 प्रतिशत अस्थि बाधित दिव्यांग है।
युक्तियुक्तकरण का दर्द: सुनीता ना तो चल सकती है…ना गुरुचरण ठीक से खड़े हो सकते है…फिर भी हो गया 100 किलोमीटर दूर ट्रांसफर, अब मुख्यमंत्री से लगाई न्याय की गुहार
लेकिन चौकाने वाली बात ये है कि युक्तियुक्तकरण में दोनों के स्कूल से घर का फासला करीब 100 किलोमीटर हो गया है। इस मामले में को लेकर कई जगहों पर गुरुचरण बड़ा और सुनीता पैकरा ने गुहार लगायी, लेकिन हर जगह से उन्हें नाउम्मीदी ही हाथ लगी है। उतना लंबा फासला तय नहीं कर पाने की मजबूरी में अब ज्वाइनिंग नहीं कर पाये दोनों शिक्षक का वेतन भी अब रोक दिया गया है। लिहाजा अब इन शिक्षकों ने मुख्यमंत्री से गुहार लगायी है।
इन दोनों शिक्षकों की कहानी केवल तबादले की नहीं है, यह कहानी है संघर्ष, अपमान और एक ऐसी व्यवस्था की, जिसने दिव्यांगता को नज़रअंदाज़ कर दिया। दोनों शिक्षक अपने पैरों पर ठीक से खड़े नहीं हो सकते — एक 100 प्रतिशत शारीरिक रूप से विकलांग है, तो दूसरा 80 प्रतिशत अस्थिबाधित।
सुनीता पैकरा, जो बचपन से 100 प्रतिशत विकलांग हैं, पहले शासकीय प्राथमिक शाला लमडांड, विकासखंड कांसाबेल में पदस्थ थीं। काउंसिलिंग में किसी कारणवश अनुपस्थित रहने के बाद उनका स्थानांतरण दूरस्थ और दुर्गम क्षेत्र — प्राथमिक शाला चुंदापाठ (विकासखंड बगीचा) कर दिया गया, जो उनके घर से लगभग 70 किलोमीटर दूर है।
सुनीता के लिए यह दूरी ही नहीं, यह पहाड़ है। एक ऐसा पहाड़ जिसे पार करना उनके लिए लगभग असंभव है। न तो उनके पास समुचित साधन हैं, न ही वे अपने शरीर के सहयोग से इस चुनौती का सामना कर सकती हैं। ज्वाइनिंग न कर पाने के कारण अब उनका वेतन भी बंद कर दिया गया है, जिससे आर्थिक संकट और भी गहरा हो गया है।
गुरुचरण बाड़: नदियों और पहाड़ों से घिरा तबादला स्थल, 80 प्रतिशत दिव्यांगता के साथ कैसे पार करें राह?
गुरुचरण बाड़ा, 80 प्रतिशत अस्थिबाधित विकलांग हैं। पहले उनकी पोस्टिंग शासकीय प्राथमिक शाला खारापारा (विकासखंड पत्थलगांव) में थी, जो उनके लिए सुलभ थी। लेकिन अब उनका स्थानांतरण प्राथमिक शाला जुनापारा, विकासखंड बगीचा कर दिया गया है।
यह स्कूल ऐसी भौगोलिक परिस्थितियों में है, जहाँ पहुंचने के लिए नदी, नाला और पहाड़ पार करने पड़ते हैं। एक सामान्य शिक्षक के लिए भी यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन गुरुचरण बड़ा जैसे दिव्यांग शिक्षक के लिए यह असंभव है।
गुरुचरण वरिष्ठता सूची में भी ऊपर हैं — वे पुरुष T संवर्ग की जिला स्तरीय सूची में क्रमांक 22 पर हैं। बावजूद इसके, उन्हें ऐसी जगह पदस्थ किया गया है जो उनकी दिव्यांगता को पूरी तरह नज़रअंदाज़ करता है।
अब आखिरी उम्मीद मुख्यमंत्री से
इन दोनों शिक्षकों ने कई बार गुहार लगाई — जिला प्रशासन से लेकर शिक्षा विभाग तक, लेकिन हर दरवाजे से सिर्फ निराशा ही हाथ लगी। अब इनकी आखिरी उम्मीद मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से है।
शिक्षक साझा मंच ने इस मामले को गंभीरता से उठाया है। मंच ने न केवल मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है, बल्कि जिला प्रशासन को ज्ञापन भी सौंपा है। मंच की मांग है कि दोनों शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण तत्काल प्रभाव से रद्द किया जाए और उन्हें पूर्व की स्कूलों में ही पुनः पदस्थ किया जाए।
एक करुण अपील…
ये शिक्षक सिर्फ नौकरी नहीं कर रहे थे, वे समाज के सबसे कमजोर वर्ग को शिक्षित कर रहे थे। अब सिस्टम की कठोरता ने उनके जीवन को लगभग ठहराव में ला दिया है। यह सिर्फ दो लोगों का मामला नहीं है, यह एक व्यवस्था के मानवता से विमुख हो जाने की कहानी है।


