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2723 शिक्षकों की सुनी रहेगी दीपावली , शासन के खिलाफ आवाज उठाने वालों को नहीं मिलेगा वेतन


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2723 शिक्षकों की दीपावली रहेगी सुनी, शासन के खिलाफ आवाज उठाने वालों को नहीं मिलेगा वेतन

 

 

भारतीय संविधान में हर किसी को न्याय पाने का अधिकार है, जिसके लिए न्यायपालिका की स्थापना की गई है। किंतु यदि न्यायपालिका द्वारा जारी आदेश को किसी के द्वारा मानने से ही इनकार कर दिया जाए, तो किस बात का न्याय। यही देखने को मिल रहा है शिक्षा विभाग के संशोधन निरस्तीकरण के मामले में, जहां शिक्षा विभाग ने 04/09/2023 को एक आदेश जारी कर अपने ही विभाग के संयुक्त संचालक द्वारा, कई महीनों पूर्व किए गए, 2723 शिक्षकों के पदोन्नति उपरांत संशोधनों को एक साथ निरस्त कर दिया। इसके खिलाफ करीब 2000 शिक्षकों ने उच्च न्यायालय की शरण ली। जहां से उन्हें 11 सितंबर को स्टेटस को का आदेश तो मिला, किंतु शासन ने पहले ही इन शिक्षकों को एकतरफा भार मुक्त करते हुए, विगत दो माह से घर पर बैठने को मजबूर कर दिया। जिससे कि ना तो यह शिक्षक किसी शाला में कार्य कर पा रहे थे, और ना ही इन्हें वेतन मिल पा रहा था। किंतु उच्च न्यायालय ने 03/11/2023 को सुनवाई के बाद 07/11/2023 को एक आदेश जारी कर उक्त 04/09/2023 के आदेश को पूरी तरह से निरस्त कर दिया। साथ ही न्यायालय द्वारा एकतरफा भारमुक्त किए जाने की प्रक्रिया को गलत ठहराते हुए इन शिक्षकों की वेतन की समस्या को हल करने के लिए पुनः उन्हें पूर्व की शाला में उपस्थिति देकर वेतन आहरण संबंधी कार्रवाई करने का आदेश दिया। इसके अलावा इन शिक्षकों के संशोधनों की विधिवत जांच करने के लिए एक कमेटी का गठन किया साथ ही शिक्षकों को संशोधन संबंधी अभ्यावेदन देने के लिए 15 दिवस का समय दिया है।जिसमें वही अधिकारी कमेटी के सदस्य के रूप में शामिल किए गए हैं, जिन्होंने उक्त संशोधन निरस्तीकरण की कार्यवाही की थी। उक्त 07/11/2023 के आदेश का अवलोकन करने के बाद एक और जहां शिक्षा विभाग ने कमेटी से संबंधित बिंदु का पालन करते हुए संशोधन प्रभावित शिक्षकों के अभ्यावेदन मंगवाने के लिए आदेश निकाल चुकी है। किंतु दूसरी ओर इस आदेश के पूर्व शाला में पुनः उपस्थिति संबंधी बिंदु को सिरे से नकारते हुए कोई भी अधिकारी एवं स्कूल शिक्षा विभाग ने पूर्व शाला में उपस्थिति के लिए अब तक कोई आदेश नहीं निकाला है। जिससे स्थिति यह बन रही है कि एक और जहां कुछ शिक्षकों को पुनः शालाओं में कार्यभार ग्रहण कराया जा चुका है, किंतु अधिकांश शिक्षक अब भी पहले की तरह अधर में अटके हुए हैं, क्योंकि संबंधित अधिकारी यह कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं, कि उक्त आदेश में पूर्व संस्था के संबंध में भ्रम की स्थिति है एवं उच्च अधिकारियों से मार्गदर्शन मांगा गया है, और यह कहकर कोई भी अधिकारी संबंधित शिक्षकों को न्यायालय का आदेश होने के बावजूद न तो पूर्व शाला में पुनः कार्यभार ग्रहण करा रहा है और ना ही इनके संबंध में आवेदन लिया जा रहा है। किंतु आज 5 दिन बीत जाने के बाद भी उक्त आदेश का पूर्व शाला में पुनः उपस्थिति देने संबंधी उच्च न्यायालय का आदेश पूरे शिक्षा विभाग के किसी भी अधिकारी को अब तक समझ में नहीं आया है। शायद शिक्षा विभाग के अधिकारी उक्त आदेश के अंग्रेजी एवं हिंदी संस्करण को या तो समझ नहीं पा रहे, या अब भी शालाओं में कार्यभार ग्रहण करने एवं वेतन प्रदान करने की उनकी मंशा नहीं है। ऐसे में स्थिति यह है की अधिकांश शिक्षकों की दिवाली सुनी रहेगी, जबकि न्यायालय ने उनके पक्ष में निर्णय दिया है। स्थिति यह है कि अधिकारियों की जिद न्यायालय के फैसले से भी ऊपर नजर आ रही है।


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