जगदलपुरl अयोध्याश्री में प्रभु रामलला विराजमान हो चुके हैं तो रामाणयकाल के दंडक वन क्षेत्र के बस्तर में गिद्धराज ‘जटायु’ भी अब दोबारा से ऊंची उड़ान भरने लगे हैं। इंद्रावती टाइगर रिजर्व (आइटीआर) क्षेत्र में भारतीय वन्य जीव संस्थान व केंद्रीय पर्यावरण व जलवायु मंत्रालय की ओर से गिद्धों के संरक्षण के लिए शुरू किए गए योजना का प्रतिफल दिखने लगा है। तीन वर्ष में गिद्धों की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है। आइटीआर क्षेत्र में पहले गंभीर रूप से संकटग्रस्त गिद्धों की प्रजाति व्हाइट रम्पड वल्चर (जीप्स बेंगालेंसिस) व इंडियन वल्चर (जीप्स इंडीसियस) ही मिलते थे, अब पर्यावास के विकास के बाद यहां प्रवासी गिद्ध की प्रजाति यूरेशियन ग्रिम्फान (जीप्स फुलव्स) भी बड़ी संख्या में हैं। तीन वर्ष पहले आइटीआर में 55 गिद्ध थे, अब वर्तमान सर्वे में इनकी संख्या 180 पाई गई है। यहां तीनों प्रजातियों के गिद्ध ने 53 अंडे दिए, जिसमें से 38 पूर्ण तरीके से विकसित हुए हैं। पक्षी विशेषज्ञ सूरज नायर ने बताया कि 2021-22 में गिद्धों के संरक्षण के लिए योजना में इंद्रावती टाइगर रिजर्व व अचानकमार टाइगर रिजर्व चयनित किए गए थे। आइटीआर में गिद्ध संरक्षण की योजना में गिद्ध मित्र गेमचेंजर सिद्ध हुए। रुद्रारम के सूरज दुर्गम व बामनपुर के भास्कर विभाग की ओर से नियुक्त गिद्ध मित्र हैं। उन्होंने बताया कि 50 से अधिक गांव में ग्रामीणों को पारिस्थितिकीय तंत्र में गिद्ध के महत्व के बारे में बताने के साथ ही सभी गांव के पाठशालाओं में विद्यार्थियों में जनजागरूकता लाने का काम वे कर रहे हैं। गिद्धों का मुख्य भोजन मृत मवेशी है, ग्रामीणों की सहायता से वे गिद्धों को जहरीले तत्व से रहित मृत मवेशी उपलब्ध कराने का प्रयास करते हैं, ताकि उनके भोजन में कमी ना रहे। गिद्धों का नियमित अवलोकन कर इसका रेकार्ड विभाग तक पहुंचाना भी काम का हिस्सा है। आइटीआर के उपसंचालक सुदीप बालंगा ने कहा, गिद्धों के संरक्षण के लिए पशु चिकित्सा विभाग की सहायता से उनके रहवास क्षेत्र में पशुओं का उपचार एलोपैथी दवाओं के स्थान पर जड़ी-बूटी से शुरू किया गया, जिससे उनके लिए भोजन की उपलब्धता बढ़ने का प्रभाव भी पड़ा है। अब गिद्धों की जियो टैगिंग की योजना है, जिससे उनके चरित्र का अध्ययन कर उनके लिए बेहतर पर्यावास उपलब्ध कराने का काम कर सकेंगे।
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