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श्रीमद भागवत केवल पुस्तक नही साक्षात कृष्ण स्वरूप है—राधेय महाराज श्रीमद भागवत तो दिव्य कल्पतरु है—राधेय महाराज

श्रीमद भागवत केवल पुस्तक नही साक्षात कृष्ण स्वरूप है—राधेय महाराज

श्रीमद भागवत तो दिव्य कल्पतरु है—राधेय महाराज

 

 

पांडवो का हिमालय गमन हमे यह बताता है पांच तत्वों से बने इस शरीर को इसी तरह एक दिन पंच तत्वों में मिल जाना है मृत्यु ही सत्य है इसे हमे स्वीकार करना होगा तथा यह कोशिश करे कि जिस तरह राजा परिक्षित ने अपना अंत समय जान मृत्यु को सफल बनाने के लिये प्रयास किया वह हमारे समक्ष एक उदाहरण है उक्त बाते शर्मा परिवार मजरकटा द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान भक्ति यज्ञ में कथा वाचक परम् पूज्य रमेश भाई ओझा के शिष्य पंडित सुशील राधेय महाराज जी ने राजा परीक्षित प्रसंग को बताते हुये कही।
10 दिसम्बर से आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान भक्ति यज्ञ का शुभारंभ जल यात्रा के पश्चात गौकरण महात्म्य से हुई । इस अवसर पर परम् पूज्य महाराज जी ने अश्वस्थामा की कथा ,द्रोपदी के पांच पुत्रों के हत्या और राजा परीक्षित की कथा को विस्तार पूर्वक बताया। कपिल नारायण अवतार एव शिव सती चरित्र प्रसंग पर विस्तार से प्रकाश डाला और मनु सतरूपा की कथा बताते हुये सृष्टि की रचना से स्रोता समाज को अवगत कराया। महाराज जी ने भगवत महापुराण की एक एक बात को जीवन दर्शन बताते हुये कहा कि इसे हम सिर्फ सुने ही नही बल्कि अपने जीवन मे अपनाए। भगवत महापुराण हमे धर्म की बात सिखाता है धर्म यानि जिसे हम धारण करे वही धर्म है कृषक के लिये कृषि कार्य धर्म है, पुत्र के लिये माता पिता की सेवा धर्म है, शिक्षक के लिये शिक्षादान देना धर्म है, शिष्य के लिये गुरु की बात मानना धर्म है अर्थात जो भी जिस पेशे से जुड़ा है उसका ईमानदारी पूर्वक पालन करना ही उसका धर्म है और यही धर्म हमे परमात्मा से मिलाता है। भगवान की कृपा के लिये हमें दिखावा करने की जरूरत नही है अगर सच्चे मन से हम अपने कर्तव्य का पालन करते है तो वह भी भगवत भक्ति ही है।
कथा व्यास जी ने बताया कि भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं किंतु भगवान के नियम ना तो गलत हो सकते हैं और नहीं बदले जा सकते हैं।
साथ ही श्रीमद् भागवत तो दिव्य कल्पतरु है यह अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नही साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है। इसके एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है। उन्होंने कहा कि कथा सुनना एवं उसमे कही बातों को जीवन मे उतारना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मो से बढ़कर है।
राधेय महाराज जी ने कहा कि भागवत के चार अक्षर इसका तात्पर्य यह है कि भा से भक्ति, ग से ज्ञान, व से वैराग्य और त त्याग जो हमारे जीवन में प्रदान करे उसे हम भागवत कहते है।
चौथे दिवस ध्रुव चरित्र, जड़भरत चरित्र, पुरंजन आख्यान, नृसिंह अवतार, पांचवे दिवस 14 दिसम्बर को हरि अवतार, समुद्र मंथन, वामन चरित्र एवं रामावतार, छठवें दिवस 15 दिसम्बर को भगवान श्री कृष्णावतार एवं नंदोत्सव, सातवें दिवस 16 दिसम्बर को बाल लीला, गोवर्धन पूजा,रासलीला एवं श्रीकृष्ण रूखमणी मंगल विवाह, आठवें दिवस 17 दिसम्बर को सुदामा चरित्र, दत्तात्रेय जी के 24 गुरू की कथा, परिक्षित मोक्ष, नवम दिवस 18 दिसम्बर को गीता तुलसी वर्षा, सहस्त्र धारा स्नान एवं यज्ञ पूर्णाहुति सम्पन्न होगी।

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