समस्त कर्मचारी संगठनों के संयुक्त फोरम “छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी संयुक्त मोर्चा” द्वारा नई सरकार के गठन के बाद कर्मचारियों की समस्याओं को लेकर एकजुट होकर सरकार के समक्ष सार्थक प्रयास नहीं किए जाने से मर्माहत “छत्तीसगढ़ मंत्रालयीन कर्मचारी संघ” के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह राजपूत ने कर्मचारियों को लिखा खुला पत्र…….. पत्र पढ़कर कर्मचारी दे रहे हैं सकारात्मक प्रतिक्रिया…….
रायपुर : समस्त कर्मचारी संगठनों के संयुक्त फोरम “छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी संयुक्त मोर्चा” के द्वारा राज्य में नई सरकार के गठन के बाद कर्मचारियों की मूलभूत समस्याओं को लेकर सरकार के ऊपर दबाव बनाने के लिए एकजुट होकर सार्थक प्रयास नहीं किए जाने से संयुक्त मोर्चा के प्रमुख घटक “छत्तीसगढ़ मंत्रालयीन कर्मचारी संघ” के अध्यक्ष महेन्द्र सिंह राजपूत मर्माहत हैं। उनका मर्म उनके द्वारा समस्त कर्मचारियों को लिखे गए खुले पत्र से झलक रहा है। उन्होंने कर्मचारियों को जो खुला पत्र लिखा है उसे जस का तस प्रकाशित किया जा रहा है………
आदरणीय/प्रिय साथियों,
आप सब अवगत हैं और साक्षी भी हैं कि विगत वर्ष हम सबने अपने-अपने पूर्वाग्रहों और बहुत हद तक दुराग्रहों का त्याग कर बड़े जतन से “”छत्तीसगढ़ कर्मचारी अधिकारी संयुक्त मोर्चा”” का गठन किया।
संयुक्त मोर्चा ने प्रदेश के कर्मचारी अधिकारियों के लगभग शत प्रतिशत वर्ग का प्रतिनिधित्व किया और आप सबके समेकित प्रयास से “”मोर्चा के बैनर तले हम 9% महंगाई भत्ता और 9% गृह भाड़ा भत्ता”” सरकार से लड़कर लेने में सफल रहे (यद्यपि एरियर्स नहीं ले पाने की टीस हम सबके दिलों में है)।
मेरी व्यक्तिगत चर्चा वर्तमान सरकार गठन के पूर्व ही आदरणीय श्री अनिल शुक्ला जी एवं भाई श्री कमल वर्मा जी हुई थी। मेरा दोनों से आग्रह था कि हम शुरू से संयुक्त मोर्चा के रूप में सरकार पर दबाव बनाएंगे।
अफसोस की बात है कि विगत दिनों संयुक्त मोर्चा की बैठक के प्रति भाई श्री कमल वर्माजी का रुख सकारात्मक नहीं रहा। संयुक्त मोर्चा के साथ होकर सरकार के विरुद्ध लड़ना तो छोड़िए, साथ दिखने में भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है। टुकड़ों में बटने का परिणाम भी दिख रहा है कि वित्त मंत्रीजी से स्वीकृत होने के बाद भी 7वें वेतनमान एरियर्स की अंतिम किश्त को सरकार ने रोक लिया।
आपसी फूट रही DA तो जैसे सपना हो जाएगा और वेतन विसंगति निराकरण सहित शेष कैडर मांगों को पूरा करने के लिए बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
इस स्थिति में भी संगठनों द्वारा कोई प्रश्न अपने स्वयंभू मठाधीश (क्षमा कीजिएगा पर यही सत्य है) से नहीं पूछा जाना भी गंभीर सवाल खड़े करता है।
बाकि आप सब विचारवान लोग हैं। कर्मचारी संगठनों की हर परिस्थिति से आप लोग वाकिफ हैं
There is no ads to display, Please add some