शिक्षा

युक्त युक्तिकरण : प्राथमिक प्रधान पाठकों और प्राथमिक शिक्षा को होगा सर्वाधिक नुकसान

प्राथमिक प्रधान पाठकों और प्राथमिक शिक्षा को होगा सर्वाधिक नुकसान
रायपुर।शिक्षा की बुनियाद कहे जाने वाले प्राथमिक विद्यालय को तहस नहस करने की तैयारी युक्तियुक्तकरण के माध्यम से सरकार और विभाग ने कर लिया है।एक तरफ जहां शिक्षा व्यवस्था निजीकरण की राह पर चल रहा है वही पिछले दरवाजे से सरकार भी इसको प्रोत्साहित कर रही है।लंबे समय से अतिशेष शिक्षको को शिक्षक विहीन और एकल शिक्षकीय शाला में भेजने की मांग हो रही थी।कभी अध्यापन व्यवस्था तो कभी स्थानांतरण के द्वारा ऐसे स्कूलों को जैसे तैसे चलाया जा रहा था।साहस करके नई नवेली सरकार ने युक्तियुक्तकरण के माध्यम से व्यवस्था दुरुस्त करने की ठानी।परंतु अधिकारी राज में सीधे साधे मुख्यमंत्री उलझ गए।और स्कूल शिक्षा विभाग के प्रयोगधर्मी विद्वान अधिकारियों ने ऐसा चक्रव्यूह रच डाला जिसमे अभिमन्यु तो छोड़ो अर्जुन और श्री कृष्ण भी हैरान हो रहे होंगे।सरकार की सोच अच्छी थी कम दर्ज वाले शालाओं को मर्ज करना,सुविधायुक्त शहरी और सड़क के स्कूलों से अतिशेष शिक्षको को ग्रामीण और आवश्यकता वाले स्कूलों में भेजना।होना भी यही चाहिए था परंतु शायद अधिकारियों को पुराने प्रमुख सचिव जिसने विभाग का बेड़ा गर्क करके रसातल में पहुंचा दिया उनकी संगति का असर अभी तक गया नही लगता है।ऐसे ऐसे नियम बनाए की आज प्रदेश का हर शिक्षक और शिक्षाविद हैरान और परेशान है। 2008 के लागू सेटअप में प्रत्येक प्राथमिक में 60 दर्ज संख्या तक 1प्रधानपाठक और 2सहायक शिक्षक का प्रावधान था जिसे अब 1प्रधानपाठक और 1सहायक शिक्षक कर दिया गया।क्या 2शिक्षक मिलकर 60बच्चो को (5कक्षा को)गुणवत्ता युक्त शिक्षण करा पाएंगे।मतलब सरकार ने सोचा शिक्षक की भर्ती करके व्यवस्था सुधारने से बेहतर है पद में ही कटौती कर दो। हर्रा लगे न फिटकरी रंग लगे चोखा।2 में से 1 शिक्षक प्रधानपाठक होगा चाहे नियमित हो या प्रभारी । उस बेचारे को तो दिनभर ऑनलाइन,ऑफलाइन, डाक,प्रशिक्षण ,बैठक ,सर्वे और न जाने क्या क्या करना पड़ता है ।इन सब से फुर्सत मिल गई तो2 या 3 कक्षा का काम कैसे करेगा भगवान जाने।उसमे भी यदि सहायक छुट्टी या प्रशिक्षण में चला गया तो आ गई गुणवत्ता।इसी प्रकार मिडिल स्कूल में 105तक की दर्ज संख्या में 1+4यानी एक प्रधानपाठक और 4सहायक शिक्षक की व्यस्था थी जिसे बदलकर 1+3 कर दिया गया ।मतलब हर स्कूल में 1शिक्षक की कौटौती करके शिक्षा में गुणवत्ता का दिवास्पप्न सरकार और अधिकारी देख रहे है।एक झटके में 35 हजार पद विभाग से गायब कर दिया गया ऐसा जादू हो रहा है साय साय।इससे भी बड़ा तमाशा अगले नियम में है की एक ही परिसर में संचालित प्राथमिक और माध्यमिक शाला को मर्ज करके संचालन का जिम्मा मिडिल स्कूल के प्रधानपाठक को देना।मतलब भविष्य में 35 हजार प्राथमिक प्रधानपाठक के पद पदोन्नति के लिए होंगे ही नही।प्राथमिक प्रधानपाठक जो आदिकाल से अपना सर्वस्व समर्पित करके नौनिहालों का भविष्य रचता है, संस्था संचालन की जिम्मेदारी निभाता है उससे उसका अधिकार छीनकर अपने ही समकक्ष या जूनियर मिडिल प्रधानपाठक के आधीन कर देना सबसे बड़ा अन्याय है।इसी प्रकार जहां प्राथमिक,मिडिल और हाई स्कूल एक ही परिसर में संचालित हो रहे है उसका समायोजन कर संचालन प्राचार्य को देने की व्यवस्था आदेश में की गई है।मतलब प्राथमिक और माध्यमिक दोनो प्रधानपाठक के अधिकार और पद समाप्त।इसमें सुधार करने से अच्छा होता अतिशेष शिक्षको को जरूरत के शालाओं में भेजकर नई नियुक्ति करना।शिक्षा की नीव प्राथमिक और माध्यमिक शाला की व्यवस्था इस युक्तियुक्त करण के भंवर जाल में ऐसे फसने वाली है जो पूरी व्यवस्था को तबाह करेगी ये निश्चित है।इस नीति का दूरगामी परिणाम शिक्षित बेरोजगारों को भी झेलना पड़ेगा जो शिक्षक बनकर राष्ट्रनिर्माता बनने का सपना संजोए बैठे है।क्योंकि पदो मे कटौती सीधे तौर पर बेरोजगारी को बढ़ावा देगी और भविष्य को अंधकार मय कर देगी।किसी विद्वान ने कहा था किसी मुल्क को बर्बाद करने का सबसे अच्छा तरीका ये है की उसकी शिक्षा व्यवस्था पर प्रहार करके आने वाली नश्लो को बर्बाद कर दो।युक्तियुक्तकरण के नाम पर आज छत्तीसगढ़ भी इसी राह पर चल पड़ा है।सभी शिक्षक संगठन,जागरूक पालक,बुद्धजीवी समाज का कर्तव्य बनता है ऐसे विध्वंसकारी नीति का हर स्तर पर विरोध कर इसे वापस लेने का प्रयास करे। वरना वो दिन दूर नही जब हमारे स्कूलों से सिर्फ कागजी विद्वान निकलेंगे जो राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में पीछे रहकर सिर्फ रोजी मजदूरी करेंगे या मुफ्तखोरी का शिकार होकर हर जरूरत के लिए सरकार का मुंह ताकेंगे।
लेखक व विचारक
कमलेश सिंह बिसेन प्रांत सचिव छत्तीसगढ़ प्राथमिक प्रधानपाठक संघ

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