Advertisement Carousel
    What's Hot
    0Shares

    जगदलपुर। चार दशक से बस्तर का क्षेत्र नक्सलवाद की धमक के कारण भी देश-दुनिया में चर्चित रहा है। जिला मुख्यालय जगदलपुर को संस्कारधानी कहा जाता है। आजादी के पहले यह बस्तर रियासत की राजधानी थी। प्रथम चुनाव से लेकर 1971 के पांचवें चुनाव तक यहां की राजनीति में राजमहल का जबरदस्‍त प्रभाव रहा। तब मां दंतेश्वरी के माटी पुजारी, आदिवासियों के भगवान के नाम से चर्चित महाराजा स्वर्गीय प्रवीरचंद भंजदेव के इशारे पर चुनाव में जीत-हार तय होती थी। प्रवीरचंद भंजदेव जब तक जिंदा थे, कांग्रेस की दाल नहीं गली। 1952 के पहले आम चुनाव में प्रवीरचंद भंजदेव ने राजदरबारी मुचाकी कोसा को निर्दलीय चुनाव लड़ाया और वह सांसद निर्वाचित हुए। पहले ही चुनाव में कांग्रेस को समझ आ गया था कि राजमहल को पक्ष में किए बिना आगे का रास्ता बस्तर में काफी कठिन होगा। इसलिए भंजदेव से दूरियां कम करते हुए कांग्रेस ने उन्हें भरोसे में लेकर पार्टी में शामिल कर लिया। यह 1957 की बात है। इस चुनाव में राजमहल के समर्थन में आने से कांग्रेस के सुरती क्रिस्टैया चुनाव जीतने में सफल हुए, लेकिन प्रवीर और कांग्रेस के बीच जल्दी की अलगाव हो गया। इसके बाद प्रवीरचंद के जिंदा रहते ही नहीं, उनके निधन 1966 के बाद हुए दो चुनावों में भी कांग्रेस के राजमहल समर्थक निर्दलीय प्रत्याशियों ने करारी हार का सामना करना पड़ा। आपातकाल के बाद जनता पार्टी की लहर में दृगपाल शाह 1977 के चुनाव में सांसद बने। इसके बाद कांग्रेस युग की शुरुआत हुई। पिछले चुनाव में कांग्रेस के दीपक बैज सांसद बने थे।