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सत्ता का समीकरण : छत्तीसगढ़ में कर्मचारियों से वादाखिलाफी, हड़तालों का दमन भारी पड़ा कांग्रेस को, 25% किसान भी नाराज कर्मचारी परिवार से हैं, इस फेक्टर को नहीं समझने से सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस


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छत्तीसगढ़ में कर्मचारियों से वादाखिलाफी, हड़तालों का दमन भारी पड़ा कांग्रेस को, 25% किसान भी नाराज कर्मचारी परिवार से हैं, इस फेक्टर को नहीं समझने से सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस

राज्य के 9 लाख नियमित, अनियमित, संविदा और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी व पेंशनर कांग्रेस सरकार से नाराज थे

कर्मचारी परिवार से ताल्लुक रखने वाले किसान भी कांग्रेस के खिलाफ रहे

जो सरकार डीए नहीं दे सकी वो दूसरा मांग कैसे पूरा करेगी ? इस नकारात्मक छवि ने भी भूपेश सरकार का बंटाधार किया

आचार संहिता लागू होने के बाद गोपनीय तरीके से जमीनी स्तर पर कर्मचारियों ने सत्ता विरोधी माहौल बनाया ?

पेण्ड्रा/बिलासपुर/रायपुर (05 दिसंबर 2023)
छत्तीसगढ़ में लगभग 9 लाख नियमित, अनियमित, संविदा और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी तथा पेंशनर के संगठनों की उपेक्षा, वादाखिलाफी और सभी हड़तालों का दमन करना कांग्रेस सरकार को विधानसभा चुनाव में भारी पड़ा, जिससे कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई। धान बेचने वाले किसानों के भरोसे चुनाव मैदान जीतने का सपना देखने वाली कांग्रेस इस बात का आंकलन नहीं कर पाई कि राज्य के 25% किसान कर्मचारी परिवार से ताल्लुक रखते हैं, इसलिए कर्मचारियों की नाराजगी की वजह से वो भी कांग्रेस के खिलाफ रहे। कर्मचारियों में चर्चा का विषय रहता था कि जो सरकार डीए नहीं दे सकती वो दूसरा मांग कैसे पूरा करेगी ? इस नकारात्मक छवि ने भी भूपेश सरकार का बंटाधार किया।

बता दें कि राज्य में इन कर्मचारी परिवारों के औसतन 20 हजार से ज्यादा वोट एक विधानसभा क्षेत्र में हैं। इन सभी में भूपेश सरकार से नाराजगी देखी गई, जो कि कांग्रेस सरकार के पतन का प्रमुख कारण बनी।

बता दें कि 2018 के विधानसभा चुनाव में जन घोषणा पत्र में कांग्रेस पार्टी ने इन सभी की समस्याओं को शामिल कर इनकी मांगो को पूरा करने का वायदा किया था। लेकिन 5 साल के कार्यकाल में बड़े बड़े आंदोलनों के बावजूद सरकार ने न तो इनसे बात किया और न ही इनकी मांगो को पूरा किया। बल्कि हड़तालों का दमन करके इनकी नाराजगी और बढ़ाई गई।

भूपेश राज में डीए के लिए तरसे सभी कर्मचारी संगठनों को एकजुट होकर कर्मचारी अधिकारी संयुक्त मोर्चा बनाना पड़ा

यहां बताना लाजिमी है कि अब तक के किसी भी सरकार के इतिहास में जो देखने को नहीं मिला था वो भूपेश राज में देखने को मिला कि कर्मचारियों को कई बार महंगाई भत्ता के लिए भी आंदोलन करना पड़ा। यहां तक कि मंहगाई भत्ता के लिए प्रदेश के सभी कर्मचारी संगठनों को एकजुट होकर कर्मचारी अधिकारी संयुक्त मोर्चा गठित करना पड़ा। उसके बावजूद राज्य के कर्मचारियों के महंगाई भत्ता के लाखों रुपए का एरियस भुगतान नहीं किया गया और न ही भुगतान का कोई आश्वासन दिया गया जिससे कर्मचारियों को लाखों रूपये की आर्थिक हानि हुई। यही कारण है कि कर्मचारियों ने एकजुट होकर सरकार को झटका दिया।

एक चौथाई किसान कर्मचारी परिवार से इस फेक्टर को कांग्रेस नहीं समझ पाई

कांग्रेस किसानों को अपना सबसे बड़ा वोट बैंक मानकर मैदान में उतरी लेकिन वो इस फेक्टर को नहीं समझ पाई 24 लाख किसान में से लगभग 6 लाख किसान कर्मचारी और पेंशनर परिवार से हैं। कर्मचारी परिवार से होने के कारण इन किसानों ने कांग्रेस से मुंह मोड़ लिया। जिससे 25% किसानों के वोटों का नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा। वहीं 24 लाख किसान में से लगभग 6 लाख किसान भाजपा के कैडर वोट भी हैं। इस तरह से धान उत्पादक किसानों में से आधे किसानों का का वोट कांग्रेस को नहीं मिलने से उनकी सरकार बदल गई।

नाराज सहायक शिक्षकों का नारा था कि “”वेतन विसंगति दूर नहीं, अगली पारी मंजूर नहीं””

एलबी संवर्ग के सहायक शिक्षक पिछले 5 वर्ष से वेतन विसंगति के मुद्दे पर लगातार हड़ताल कर रहे थे लेकिन उन्हें धोखा मिला। उनका नारा था कि “”वेतन विसंगति दूर नहीं, अगली पारी मंजूर नहीं”” फिर भी भूपेश सरकार ने उन्हें हल्के में लिया। उन्हें स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला के व्यवहार ने भी आहत किया। पदोन्नति संशोधन के मामले में भी उनका आर्थिक और मानसिक शोषण किया गया। इन्हीं सब कारणों से सहायक शिक्षकों ने कांग्रेस पर अपना गुस्सा उतारकर उसे सरकार से बाहर का रास्ता दिखाया।

कर्मचारियों को नियमित करने का वादा भी नहीं किया पूरा

कांग्रेस ने संविदा, अनियमित और दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित करने का वायदा करके सरकार बनाया था लेकिन किसी एक कर्मचारी को भी नियमित नहीं किया। बल्कि उनके हड़तालों का दमन किया। इसलिए इन सबने एकजुट होकर चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा उतारा। 

आचार संहिता लागू होने के बाद जमीनी स्तर पर कर्मचारियों ने सत्ता विरोधी माहौल बनाया ?

आचार संहिता लगने से पहले छत्तीसगढ़ में जो भाजपा सत्ता की दौड़ में कहीं नहीं दिख रही थी, आचार संहिता लागू होने के बाद अगर वो भाजपा नजदीकी लड़ाई में दिखने लगी तो उसका बहुत बड़ा कारण यह भी है कि आचार संहिता लागू होने के बाद जमीनी स्तर पर गोपनीय तरीके से कर्मचारियों ने सत्ता विरोधी माहौल बनाना प्रारंभ किया। अपने अपने तरीके से अपने करीबी लोगों और रिश्तेदारों के बीच में कर्मचारी सरकार की कमियां गिनाने लगे जिसका नुकसान कांग्रेस को हुआ और मुख्य विपक्षी पार्टी होने के कारण उसका स्वाभाविक लाभ भाजपा को मिला।


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