Chhattisgarh News

भाजपा के गढ़ को भेदने कांग्रेस लोकसभा चुनाव में चेहरा बदलकर प्रयोग कर रही

Posted on

बिलासपुरl छत्‍तीसगढ़ के बिलासपुर लोकसभा एकमात्र ऐसी संसदीय सीट है, जहां वर्ष 1996 से आज तक हुए चुनाव में भाजपा व कांग्रेस चेहरा बदलते रही है। राजनीतिक रूप से लिए जाने वाले निर्णय में कांग्रेस हर बार असफल साबित हो रही है। राष्ट्रीय राजनीति में बनने वाले माहौल और मुद्दों का असर, ऐसा कि मतदाताओं का रुझान भाजपा के पक्ष में ही आ रहा है। भाजपा के अभेद गढ़ को भेदने के लिए कांग्रेस प्रत्येक लोकसभा चुनाव में चेहरा बदल-बदलकर प्रयोग कर रही है। चेहरा बदलने के बाद भी असफलता ही हाथ लग रही है। चेहरा बदलने में भाजपा भी पीछे नहीं है। वर्ष 2009 से लेकर वर्ष 2019 तक हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा भी हर चुनाव में नए चेहरे उतरते रही है। चेहरा बदलने के बाद भी मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर ही रहा है। ये अलग बात है कि जीत-हार का आंकड़ा हर बार बदल जा रहा है। राज्य गठन के बाद वर्ष 2004 में लोकसभा का चुनाव हुआ। इस चुनाव में भाजपा ने सांसद मोहले को आखिरी बार चुनाव मैदान में उतारा। जीते और दिल्ली पहुंच गए। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव से भाजपा ने नए चेहरे पर दांव खेलना शुरू किया है। यह सिलसिला आज भी जारी है। दिलीप सिंह जूदेव, लखनलाल साहू व अरुण साव के बाद अब लोरमी के पूर्व विधायक तोखन साहू को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस बीते एक दशक से यह प्रयोग करते आ रही है। राज्य गठन के बाद डा बसंत पहारे, डा रेणु जोगी, भाजपा से कांग्रेस प्रवेश करने वाली करुणा शुक्ला, कोटा के विधायक अटल श्रीवास्तव, ये कुछ ऐसे चेहरे हैं जिस पर दांव लगाने के बाद भी कांग्रेस को सफलता नहीं मिल पाई है।


There is no ads to display, Please add some
Click to comment

Most Popular

Exit mobile version